यूपी / सुदीप्त मणि त्रिपाठी : लोक निर्माण विभाग सड़कों के निर्माण के लिए होने वाले ई-टेंडर की प्रक्रिया को पारदर्शी तरीके से नियोजित करने के लिए प्रहरी-ऐप का इस्तेमाल करता है। लोक निर्माण विभाग का दावा है। कि इस ऐप के माध्यम से टेंडर की टेक्निकल जांच आसान और पारदर्शी हो जाती है। यानी प्रहरी एप एक मोस्ट ट्रान्सपैरेन्ट सिस्टम है। जिसकी वजह से टेंडर देने की प्रक्रिया ज्यादा सरल और पारदर्शी तरीके से संभव है। प्रहरी एप के माध्यम से तकनीकी बिड हेतु ठेकेदारों द्वारा मास्टर डाटा जैसे-अनुभव, मैनपाॅवर, मशीनरी आदि के बारे में जानकारियां भरी जाती हैं। जिसके आधार पर उन्हें टेंडर दिया जाता है।
लेकिन, इस सो कॉल्ड पारदर्शी सिस्टम की आड़ में प्रहरी एप को बाईपास कर भारी गड़बड़ घोटाला किया जा रहा है। आरोप है कि अधिकारियों की कृपा से ऐप पर सिर्फ कुछ चुनिंदा ठेकेदारों को ही टेंडर के लिए अप्रूवल मिल रहा है जबकि उनके द्वारा भरी गयी जानकारियां मसलन कागज और मशीनरी तक सही नहीं हैं। सूत्रों के अनुसार मशीनों की फर्जी इनवॉइस लगाकर काम लिए गए हैं। प्रहरी ऐप पर ई-टेंडरिंग के तय नियमों को दरकिनार कर अधिकारियों द्वारा अपनी मर्जी से टेंडर का वितरण किया जा रहा है जिसकी वजह से कई ठेकेदारों के हजारों करोड़ के टेंडर फंसे हुए हैं। विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक जनपद कुशीनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, संतकबीर नगर, अमेठी, गोंडा, फैज़ाबाद में दिसम्बर माह में हुए टेंडर कृपापात्र ठेकेदारों को दी गयी है जिनके कागजात सही नहीं थे।
दरअसल, प्रहरी एप ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया को आसान बनाने और पारदर्शी तौर पर वितरण को सुनिश्चित करने के लिए लांच की गयी थी। आपको बता दें उत्तर प्रदेश के लोकनिर्माण विभाग की तरफ से चलाया जा रहा ‘प्रहरी ऐप’ ई निविदा में शुचिता और पारदर्शिता के लिए रोल मॉडल बना हुआ है लेकिन अधिकारियों की मनमानी और मिलीभगत ने इस ऐप की कार्यप्रणाली पर अब गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। अपनी शुचिता और पारदर्शिता के लिए चर्चा में आया यह ऐप अब भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है और तयशुदा नियमों को दरकिनार कर टेंडर वितरित किया जा रहा है।
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