Dhanteras 2021: धनतेरस (Dhanteras) के दिन जहां पर श्रीगणेश-लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा की विधान है तो वहीं, यमराज की पूजा करने का भी विशेष नियम हैं। क्या आप जानते हैं कि इस दिन यमराज की पूजा इसी दिन क्यों की जाती है। कैसे इस दिन इनकी पूजी की शुरुआत हुई। यमराज के लिए क्यों दीपदान किया जाता है। अगर आपको ये नहीं पता है तो इस खबर के जरिए आपको अपने सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
यम की दीपक जलाने की परंपरा
धनतेरस के दिन यम के नाम से दीपदान की परंपरा है और इस दिन यम यानि यमराज के लिए आटे का एक चौमुख दीपक बनाकर उसे घर के मुख्य द्वारा पर रखा जाता है। घर की महिलाएं रात के समय दीपक में तेल डालकर चार बत्तियां जलाती है। बता दें कि यह दीपक घर की दक्षिण दिशा में जलाया जाता है। दीपक जलाते समय दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ‘मृत्युनां दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम्’ मंत्र का जाप किया जाता है।
इसलिए करते हैं दीपदान
धनतेरस के दिन यम के नाम से दीपदान किया जाता है और इसके पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। एक समय यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राण हरते समय किसी पर दयाभाव आया है। तो वे संकोच में आकर बोले- नहीं महाराज! यमराज ने उनसे दुबारा यही सवाल पूछा तो उन्होंने संकोच छोड़कर बताया कि एक बार एक ऐसी घटना घटी थी जिससे हमारा हृदय कांप उठा था।
एक बार हेम नामक राजा की पत्नी ने एक पुत्र का जन्म दिया तो ज्योतिषियों ने नक्षण गणना करके बताया कि जब इस बालक का विवाह होगा, उसके चार दिन बाद ही इसकी मृत्यु हो जाएगी। यह जानकर राजा ने बालक को यमुना तट की गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखकर बड़ा किया। एक बार जब महाराज हंस की युवा बेटी यमुना तट पर घूम रही थी तो उस ब्रह्मचारी बालक ने मोहित होकर उससे गंधर्व विवाह कर दिया। लेकिन विवाह के चौथे दिन ही वह राजकुमार मर गया। पति की मृत्यु देखकर उसकी पत्नी बिलख-बिलख कर रोने लगी और उस नवविवाहिता का विलाप देखकर हमारा यानि यमदूतों का हृदय कांप उठा। तभी एक यमदूत ने यमराज से पूछा कि ‘क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है?’ यमराज बोले- एक उपाय है। अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को धनतेरस के दिन पूजा करने के साथ ही विधिपूर्वक दीपदान भी करना चाहिए। इसके बाद अकाल मृत्यु का डर नहीं सताता। तभी से धनतेरस पर यमराज के नाम से दीपदान करने की परंपरा है।
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