कोटवा धाम को पहले किस नाम से जाना जाता था?

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कोटवा धाम

रामनगर तहसील मुख्यालय के पूर्वोत्तर में बदोसराय लगभग 9 किमी पर स्थित है, जिसकी एक आध्यात्मिक राजा द्वारा लगभग 550 वर्ष पूर्व स्थापना की गई थी। इस स्थान के लगभग 6 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में कोटवा है, यहां ‘सतनामी’ संप्रदाय के संस्थापक बाबा जगजीवन दास का मंदिर है, इसे कोटवा धाम के नाम से जाना जाता है।

कोटक वन के नाम से जाना जाता था कोटवा धाम

साहेब जगजीवन स्वामी महाराज यहां पर तपस्या की तब यह कोटक वन के नाम से जाना जाता था। और साहेब अपनी लीलाआो को समय 2 दर्साते ऱहे जैसे 500 सौ साधवो का जत्था अाया और बाबा की परीक्षा लेनी चाहिए कहां की हम सभी लोग दूध पीना चाहते हैं। तो बाबाजी ने उनका मान रखने के लिए अपने गुरुदेव का भजन किया और ठीक सभी साधकों को इतना दूध पिलाया कि आज तक विख्यात है।

आभरण कुंड में दूध की ज्वाला बहने लगी तभी साधु बाबा का चमत्कार देखकर उनके चरणों में गिरकर क्षमा याचना मांगी और कहा मुझे माफ कर दो हम लोग आपकी परीक्षा लेने के लिए आए थे। तभी से यह आभरण कुंड एक पवित्र कुंड है। जिसका चरणों पान करने से समस्त पापों का नाश होता है। तभी से इस कुंड में स्नान नहीं करते थे लोग क्योंकि माना जाता है। कि दूध में सिर्फ भगवान ही स्नान करते हैं।

कोटवा धाम

यहां पर हनुमान जी का भी बहुत पुराना मंदिर है। इस मंदिर की यह कथा है। कि साहेब जगजीवन दास साहेब बड़े पुत्र एक बार अयोध्या धाम श्री हनुमान जी महाराज के दर्शन करने के लिए गए थे और वहां पर उनके हाथ में चिलम पी रहे थे तब वहां के पुजारियों ने उन्हें देखकर मंदिर से बाहर जाने के लिए कह दिया और उनको प्रसाद और दर्शन भी नहीं करने दिया तो फिर बाबाजी के बड़े पुत्र का नाम श्री जसकरण दास जी महाराज वहां से सरयू जी के पार चले आए और रात भर उसी नदी के किनारे विश्राम किया उसके बाद सुबह 4:00 बजे मंदिर के पुनः गेट खोलने के लिए रोज की तरीके से हनुमान जी महाराज के गेट गेट का दरवाजा नहीं खुला तो वहां के उस समय के जो गद्दी धर्म महंत वर्तमान समय में थे उन्होंने बहुत उपाय करने के बाद अपनी दिव्य दृष्टि से देखा तो फिर पूछा पुजारियों से की कल शाम को अंतिम समय प्रसाद चढ़ाने के लिए यहां पर यहां पर कौन आया था तब पुजारियों ने बताया कि एक बाबा चिलम पीते हुए एक हाथ में लड्डुओं का डिब्बा लिए हुए आए थे और उनको हम सभी लोगों ने ऐसी अवस्था में देखकर खदेड़ दिया बाबा की ऐसा चमत्कार देखकर सारे पुजारी परेशान हो गए दरवाजा ना खुला महंत के कहने पर फिर बाबा जी को ढूंढने का कार्य करना प्रारंभ किया गया तो बाबाजी नदी के उस पार झाड़ियों में बैठे मिले तो पुजारियों ने उनके चरणों में गिर कर माफी मांगी।

कहा महाराज आपके लिए और आपके बिना मंदिर का दरवाजा नहीं खुलेगा तो पुजारियों ने बाबा जी से कहां थी आओ नाव पर बैठ चलो तो बाबाजी ने कहा तुम लोग चलो मैं आ रहा हूं और बाबा जी फिर उसी पानी के ऊपर चलते चले आए यह गाथा उस हनुमान जी महाराज अयोध्या की लीला को देखकर सभी लोगों ने दंग रह गए और साथ में वहां से हनुमान जी महाराज बाबाजी के साथ खुद ब खुद चले आए यह मंदिर उन्हीं के हाथों से बनाया हुआ है।

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