क्या आपके दिमाग में कभी यह विचार आया है, आखिर क्यों सभी साधु-संन्यासी गेरुआ वस्त्र पहनते हैं। नारंगी या गेरुआ रंग के लिए कहा जाता है कि यह रंग त्याग का प्रतीक होता है। नारंगी, गेरुआ, भगवा या केसरिया रंग को जीवन में आने वाले नए प्रकाश के तौर पर देखा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि सूर्य की किरणें भी केसरिया रंग की होती है जो जीवन में नया सवेरा लेकर आती हैं।
साधु-संन्यासी क्यों पहनते हैं गेरुआ रंग के वस्त्र
शरीर में सात चक्रों का जिक्र किया गया है जिसमें आज्ञा चक्र का रंग भगवा बताया गया है। वही आज्ञा चक्र को ज्ञान प्राप्ति का सूचक माना जाता है और आध्यात्मिक राह पर चलने वाले लोग सबसे उच्चतम चक्र को प्राप्त कर सकें, इसके लिए वो भगवा या गेरुआ रंग के वस्त्र धारण करते हैं। गेरुआ वस्त्र धारण करने वालों के लिए एक दूसरा तर्क दिया जाता है कि इस तरह के कपड़े को देखकर समाज अलग तरह कैसे बर्ताव करता है और उन्हें मोह-माया में फिर से फंसने के लिए उत्साहित नहीं करता है। कपड़े को देखकर लोग समझ जाते हैं कि उनके साथ किस तरीके का बर्ताव करना है और किस तरीके की बातें करनी हैं।
भगवा रंग ज्ञान का सूचक
कहा जाता है कि आभामंडल का काला हिस्सा भी इस रंग को पाकर शुद्ध हो जाता है। नारंगी रंग को इस तरह भी देखा जाता है कि ज्यादातर फलों के पकने पर उनका रंग नारंगी, भगवा, पीला या केसरिया हो जाता है यानी यह रंग परिपक्वता को भी दर्शाता है। इस रंग को ज्ञान का सूचक माना जाता है और इससे पता चलता है कि इस रंग को धारण करने वाला इंसान दुनिया को देखने का नजरिए से देखना शुरू कर चुका है।