आज दीपावली है। आज के दिन श्री राम, मां सीता और छोटे भाई लक्ष्मण सहित अयोध्या वापस लौटे थे। उनके वापस आने की खुशी में पूरे नगर को रोशन कर दिया गया और उत्सव मनाया गया। तब से दीपावली का त्योहार हर वर्ष मनाया जाता है।
राम का लौटना हमारे अपने जीवन की ही बात है
यदि सुक्ष्म दृष्टि से देखें तो राम का लौटना हमारे अपने जीवन की ही बात है। हम जिस दौर में है, जैसा समाज हमने निर्मित कर रखा है और दुनिया का जो हाल है। हमें स्वयं से यह प्रश्न पूछना पड़ेगा कि यह उत्सव हमारे लिए क्या मायने रखता है? क्या श्री राम मेरे हृदय में वास करते हैं? अगर नहीं तो क्या ये दीपावली मैं इस रूप में मना रहा हूं कि अपने जीवन में श्री राम को स्थान दे पाऊं?
घर की सफाई कर ली, मन की सफाई की क्या?
यदि मन की गंदगी, कूड़ा-कचरा सब वैसे का वैसा ही है तो फिर कैसी दीपावली, कैसी रोशनी?
मन तो अंधकार में ही है। कराह रहा है। उसे शांति चाहिए। और उस शांति को पाने के लिए न जाने कितनी फालतू की चीज़ें जमा कर रखी हैं। शांति फिर भी मिलती नहीं। शांति तो तभी मिलेगी जब मन ये देख ले कि जो भी जमा किया है सब व्यर्थ है। जब मन कड़ा होकर अपना निरीक्षण स्वयं करे। जब मन ये कह दें कि जीवन में फालतू और गलत चीज़ों को स्थान नहीं दूंगा। जब मन निश्चय कर ले कि अपनेआप से अब लुका छिपी बंद। अब अपने सारे मुखौटे बेनकाब करूंगा। पूरी नग्नता के साथ स्वयं को देखूंगा। और अपने अंदर जितनी गंदगी दिखाई देगी उसको स्वीकार करूंगा। तब जाकर कहीं जीवन में “राम” अवतरित होते हैं। अगर इस दीपावली हम ऐसा नहीं कर रहे तो फिर यह कैसी दीपावली?
जीवन में बोध ग्रंथों को स्थान दें
घरों के साथ मन को रोशन करें। पटाखें फोड़ें या न फोड़ें लेकिन अपने भीतर झूठ के बुलबुले को अवश्य फोड़ डालें। जीवन में बोध ग्रंथों को स्थान दें। यही दीपावली है। यही श्री राम की वापसी है।
यह दीपावली बोध वाली।
यह भी पढ़ें…