पिछले कुछ वर्षों में रेत खनन के साथ-साथ हिंसा की वारदातों में भी वृद्धि दर्ज की गई है। भारत में भी रेत माफिया और स्थानीय लोगों के बीच संघर्ष की खबरे भी अक्सर सामने आती रहती हैं। भारत में खनन को लेकर होने वाले इन संघर्षों के लिए काफी हद तक पानी को लेकर होने वाला विवाद, प्रदूषण और चोरी छुपे किया जा रहा अवैध खनन जिम्मेवार है।
इस बारे में मैकगिल विश्वविद्यालय से जुड़े और शोध के प्रमुख शोधकर्ता मेटे बेंडिक्सन ने बताया कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रेत उद्योग, सतत विकास के 17 लक्ष्यों में से करीब आधों को प्रभावित कर रहा है और उनके बीच टकराव की स्थिति है। उनके अनुसार रेत और बजरी के खनन का पर्यावरण पर जो असर पड़ता है, वह पारिस्थितिक तंत्र की प्राकृतिक गतिशीलता से जुड़े लक्ष्यों के साथ टकरा रहा है।
इसके कारण प्रदूषण बढ़ रहा है और यह स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर रहा है। यही नहीं इससे जो सामजिक असमानता पैदा हो रही है वो छोटे खनिकों और उनके परिवर्तन को भी प्रभावित कर रही है। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से इसकी मांग और कीमतों में इजाफा हुआ है, उसने अवैध खनन को बढ़ावा दिया है। जिसके कारण नदियों और समुद्र तटों के पारिस्थितिकी तंत्रों पर असर पड़ा है।
गैर जिम्मेदाराना तरीके से किए जा रहे खनन के चलते नदियों और समुद्रों के किनारे बसे लोगों, उनके घरों और बुनियादी ढांचे के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंच रहा है। अनुमान है कि यह नदियों के किनारे बसे 300 करोड़ लोगों के जीवन को भी प्रभावित कर रहा है। दुनिया भर में भारत सहित करीब 70 देशों में अवैध रेत खनन के मामले सामने आए हैं। पिछले कुछ वर्षों में रेत को लेकर हुए संघर्षों में स्थानीय नागरिकों, पुलिस और सरकारी अधिकारियों सहित सैकड़ों लोग मारे गए हैं।
जरुरी है पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन
हालांकि शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि यदि इसके खनन को ठीक तरह से प्रबंधित किया जाए तो यह एसडीजी के कई लक्ष्यों को हासिल करने में सहयोग कर सकता है। उदाहरण के लिए यह गरीबी उन्मूलन में मदद कर सकता है, यह उद्योग लाखों लोगों को रोजगार देता है। साथ ही सड़कों और अन्य जरुरी बुनियादी ढांचे के निर्माण में भी मददगार होता है। यह निवेश के अवसर पैदा कर सकता है। ऐसे में इस समस्या का समाधान खनन से जुड़ी सभी गतिविधियों को रोकना नहीं है इसके लिए प्रबंधन से जुड़ी प्रभावी योजनाओं और नीतियों के निर्माण की आवश्यकता है।
हमें वो रास्ता अपनाना होगा जो संतुलन बनाता हो। अवैध खनन पर रोक जरुरी है, पर साथ ही हमें रेत और बजरी उद्योग को इस तरह विकसित करना है जिससे वो सतत विकास के लक्ष्यों में भी मददगार हो। हमें खनन के प्रभावों को बेहतर तरीके से समझने की जरुरत है। विशेष रूप से कमजोर देशों में जहां रेत और बजरी के खनन पर कोई रोक टोक या पाबन्दी नहीं है। वहां पर स्थानीय समुदायों और पर्यावरण पर पड़ने वाले इसके असर को समझने की जरुरत है, जिससे उचित नीतियां और योजनाएं बनाई जा सकें।
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