विवेकानंद को 1893 में विश्व धर्म संसद में उनके भाषण की वजह से वैश्विक ख्याति मिली थी। लेकिन वो 1901 में जापान में आयोजित हुई विश्व धर्म संसद में हिस्सा नहीं ले सके थे। इसका कारण था उनका गिरता स्वास्थ्य। गोपाल श्रीनिवास बनहती द्वारा विवेकानंद पर लिखी गई चर्चित किताब के मुताबिक उन्हें जीवन के आखिरी समय में अस्थमा, मधुमेह और इनसोम्निया (नींद की बीमारी) जैसी बीमारियों ने जकड़ लिया था। गिरते स्वास्थ्य के बावजूद विवेकानंद ध्यान, लेखन के अलावा रामकृष्ण मिशन के फैलाव के काम में लगे रहे थे।
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण
स्वामी जी की मृत्यु 4 जुलाई, 1902 को हुई। मृत्यु के पहले शाम के समय बेलूर मठ में उन्होंने 3 घंटे तक योग किया। शाम के 7 बजे अपने कक्ष में जाते हुए उन्होंने किसी से भी उन्हें व्यवधान ना पहुंचाने की बात कही और रात के 9 बजकर 10 मिनट पर उनकी मृत्यु की खबर मठ में फैल गई। लेकिन, मठकर्मियों का मानना है कि स्वामी जी ने महासमाधि ली थी। तो वहीं मेडिकल रिपोर्ट के दौरान स्वामी विवेकानंद की मृत्यु दिमाग की नसें फटने के कारण हुई थी। इस तरह स्वामी विवेकानंद महज महज 39 साल की आयु इस नश्वर जगत को छोड़कर चले गए।
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