21 Gun salute: हर साल 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रगान के समय 21 तोपों की सलामी दी जाती है। तोपों की इस सलामी को लेकर हर किसी के मन में ये सवाल चल रहा होगा कि आखिर एक नहीं, दो नहीं… पूरे 21 तोपों की सलामी आखिर क्यों तो आज हम आपको बताते हैं कि आखिर इस 21 तोपों की सलामी के पीछे का पूरा इतिहास?
क्या है 21 तोपों की सलामी का इतिहास
भारत को 21 तोपों की सलामी की परंपरा ब्रिटिश साम्राज्य से विरासत में मिली है। आजादी से पहले सर्वोच्च सलामी 101 तोपों की सलामी थी जिसे शाही सलामी के रूप में भी जाना जाता था जो केवल भारत के सम्राट (ब्रिटिश क्राउन) को दी जाती थी। इसके बाद 31 तोपों की सलामी या शाही सलामी दी गई। यह महारानी और शाही परिवार के सदस्यों को पेश किया गया था। यह भारत के वायसराय और गवर्नर-जनरल को भी पेश किया गया था। 21 तोपों की सलामी राज्य के प्रमुख और विदेशी संप्रभु और उनके परिवारों के सदस्यों को पेश किया गया था।
राष्ट्रपति के रूप में गणराज्य भारत के राज्य प्रमुख को कई अवसरों पर 21 तोपों की सलामी से सम्मानित किया जाता है। शपथ ग्रहण समारोह के बाद हर नए राष्ट्रपति को इसी सलामी से सम्मानित किया जाता है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रपति, दोनों को स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के दौरान 21 तोपों की सलामी से सम्मानित किया जाता है।
राजकीय सम्मान क्या होता है?
जिस दिवंगत को राजकीय सम्मान दिया जाता है उसके अंतिम संस्कार के दौरान उस दिन को राष्ट्रीय शोक के तौर पर घोषित कर दिया जाता है और भारत के ध्वज संहिता के अनुसार राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका दिया जाता है। इस दौरान एक सार्वजनिक छुट्टी घोषित कर दी जाती है। दिवंगत के पार्थिव शरीर को राष्ट्रीय ध्वज के ढक दिया जाता है और बंदूकों की सलामी भी दी जाती है।
किन्हें दी जाती है 21 तोपों की सलामी?
देश के आजाद होने के बाद सर्वोच्च सलामी 21 तोपों की मानी गई। राष्ट्रपति को भारतीय गणराज्य का प्रमुख माना जाता है। इसलिेए राष्ट्रपति को कई मौकों पर 21 तोपों की सलामी देकर सम्मानित किया जाता है। प्रत्येक राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह के बाद उसे 21 तोपों की सलामी से सम्मानित करने का प्रोटोकॉल है। राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रपति दोनों को स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर 21 तोपों की सलामी दी जाती हैं।
भारतीय सैनिकों को भी यह सलामी दी जाती है जिन्होंने युद्ध काल में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया हो। इसके अलावा उनके शहीद या निधन होनेे पर अंतिम संस्कार के दौरान भी तोपों की सलामी दी जाती है। इसके अलावा राजकीय शोक के दिन राष्ट्रीय ध्वज झुका होने पर तोपों की सलामी दी जाती है।
8 तोपों से कैसे दी जाती है 21 तोपों की सलामी?
आजाद भारत में 21 तोपों की सलामी की प्रथा पहले गणतंत्र दिवस से ही चली आ रही है। लेकिन 21 तोपों की सलामी 21 तोपों से नहीं दी जाती है. दरअसल, 21 तोपों की सलामी 7 अलग-अलग तोपों से दी जाती है और हर एक तोप से 3 गोले दागे जाते हैं। इस प्रकार 21 तोपों की सलामी पूरी होती है। लेकिन बता दें कि गणतंत्र दिवस की परेड के दौरान 7 के बजाय 8 तोप लाई जाती है, ताकि किसी भी तोप के काम ना करने पर इमरजेंसी में एक्सट्रा तोप का इस्तेमाल किया जा सके।
हर 2.25 सेकेंड में ही क्यों दागा जाता है गोला
तोपों से गोले का फायर करने का समय 2.25 सेकेंड का होता है। यानि 2.25 सेकंड में एक फायर होता है। इसके पीछे भी एक कारण है। दरअसल हमारा राष्ट्रगान जन गण मन 52 सेकेंड का होता है। 21 तोपों की सलामी भी 2.25 सेकेंड के साथ 52 सेकेंड में खत्म हो जाती है।
तोप से गोला दागने पर क्यों नहीं होता कोई नुकसान
कई लोगों के मन में ये सवाल आता है कि 21 तोपों की सलामी के दौरान जिन गोलों का इस्तेमाल किया जाता है, क्या वो असली होते हैं? तो आपको बता दें कि सलामी में इस्तेमाल किए जाने वाले गोले खास तरह से बनाए जाते हैं। इसे सेरोमोनियल कार्टरेज कहा जाता है। ये गोले अंदर से खाली होते हैं, जब इनको फायर किया जाता है तो केवल धुआं और आवाज आती है। इससे किसी तरह का नुकसान नहीं होता।
इस आधार पर तय हुए सलामी के मानक
असल में साल 1877 तक तोपों की सलामी के लिए मानक तय नहीं थे. इसी साल लगे दरबार के दौरान लंदन में सरकार की सलाह पर वायसराय ने एक नया आदेश जारी किया, जिसके तहत ब्रिटिश सम्राट के लिए बंदूक की 101 और भारत के वायसराय के लिए 31 सलामी तय की गई। इसके साथ ही ब्रिटिश राज के साथ भारतीय राजाओं के संबंधों के आधार पर उन्हें 21, 19, 17, 15, 11 और 9 बंदूक सलामी देने का पदानुक्रम तय किया गया था।
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